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तुम्हें समझने के प्रयास में
हर बार तुम्हें नया पाया,
तुम एक व्यवस्था कि तरह हो
जब मिली पहले से अधिक व्यवस्थित , सुसज्जित।
मैं चकित हूं ...
कैसे एक लंबा इतिहास साथ लिए फिरती हो ,
कितने करीने से गूथे रखती हो
सभ्यताऐं अपनी वेणी में ,
तुम्हारे कांधे पर बिछे खुले केश जैसे
कल्पनाओं से यथार्थ को आती सड़के हो,
कल्पनाएं जिनमें जीवन है ,
जो दिखती नहीं पर सटी रहतीं है
तुम्हारी गर्दन के पिछले हिस्से से ।
कितनी सहजता से ढूंढे है तुमने
सारी मुश्किलों के समाधान ,
तुम चाहो तो अपने लिए भी
मरोड़ के टांक सकती हो
घिसी पिटी परंपराऐं ,
जैसे व्यस्तता में लपेट देती हो
अपने बिखरे बालों को एक जूड़े में ।
2. चक्र
जब तक घोघें के स्पर्श में हो
प्रेम होता है,
विलग होने पर
पोषित करता है नाद ,
देव गृह की सौम्य गूंज में
बनता है शांति रक्षक ,
विनाश होता है -
जब जब युद्ध भूमि में
करता है उच्छ्वास ,
शंख और मन सदा समान रहे
कोमल , कठोर व हमारे हाथों विवश ।