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1) मैंने
पारिजात को
खिलते देखा है
इतना सुन्दर
इतना सुन्दर
इतना सुन्दर खिलते देखा है !
कि
अब
ओझल हो चुका है
स्मृतियों से ही…।
2) कवि के
पहले ड्राफ़्ट की भाँति
मान ली जाती हैं
लड़कियाँ
वे लिखी जाती हैं
मरोड़कर
फेंक देने के लिए।
3) मुझे कविता नहीं आती
वह तो बस कई दफ़े
रोटी सेंकते
नज़र अटक जाती है
दहकते तवे की ओर
और हाथ
छू जाता है उससे
तब उफन पड़ती है
कविता।
4) मैंने अपने जीवन के
सबसे उदास क्षणों पर
कविता तब लिखी
जब उस उदासी को लेकर
मैं सबसे ज़्यादा तटस्थ थी।
5) पिता का 49वाँ जन्मदिन
उम्र के साथ उनके चेहरे पर लटकी मुस्कान को
मैंने उनकी उम्र से आधी होते हुए देखा।
माथे की शिकन
जिसने कभी बैठना नहीं सीखा था
वह पिता की उम्र से
दुगुनी हो चुकी है।
रिटायरमेंट तक पहुँचने से पहले ही
पिता मना चुके होंगे
अपनी शिकन की
डायमंड जुबली।