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तेरे शहर में होड़ है पर तू मजबूर हैं,
शहर की गलियों में तेरी ही शोर हैं।
हो सकता हैं आधी जिंदगी सोई न हो,
पर तू देखकर भी कर गया अनदेखा।
जाग रही हैं रात-रात भर जगी ख़ुफ़िया निगाहें,
खोज रही राह पहचान रही हैं, अपने ही चेहरे को।
मैं और वह
साजिशों में फंसी हैं सुरागें ,
देख रही तेरी राह खोज रही हैं तेरी बाह।
सब साजिश सब खामोश,
जैसे कुछ देखा ही न हो।
आज़ादी मुबारक का गुनगान चल रही हैं,
युवा अपने दर्द को समेटे जल रहें हैं।
भभकी निगाहों में निगाहें डाल
देख रहे हैं षड्यंत्र ,
पर खामोश।
तेरे शहर में होड़ है पर तू मजबूर हैं,
शहर की गलियों में तेरी ही शोर हैं।
साजिश के जख्मी लोग बेजुबां, बेबस है,
एक नहीं दो नहीं पूरा देश इस साजिश का हिस्सा है।
दिखावे की अमृतवृष्टि हो रही हैं,
बदले में आग से खेल रहे है।
जनता अपनी ही सड़ी-गली नीति मे फंसे है।
सब चुप्पी साधे देख रहे हैं ,
झटके के गोले खा रहे हैं।