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प्रिया जांगिड़ की कविताएं
मैं प्रकृति की मासूम तितली और नदी बनूं
तुम मेरे समंदर बनोगे क्या,
अपने आप से भी पीछे खड़ी हूँ मैं
तुम अपने बराबर में मुझे खड़ा करने
का साहस रखोगे क्या,
लहू के रिश्तों से विदा लेकर आऊँ
तो मेरे साथ एक नया रिश्ता बनावोगे क्या,
गलत लोगों पर बहुत वक्त बर्बाद किया है मैनें
मेरे सब सवालों का जवाब दे पाओगे क्या,
मैं जब जाऊँ इस दुनिया से
तो मेरी दास्ताँ सुनाना
मेरा सब बुरा भी कहना
पर अच्छा भी सब बताना
बहुत उम्मीद है तुमसे
तुम मुझे खुश रखोगे क्या,
मेरे सब सवालों का जवाब दोगे क्या,
सुनो ना......
इश्क़ बेपनाह है तुमसे
एक बार जताने दोगे क्या.......