शुभी (शोधार्थी, मध्यप्रदेश)
हिंदी भाषा को जीवित रखने के लिए, आर्थिक सहयोग
शुभी (शोधार्थी, मध्यप्रदेश)
पढ़ना चाहती हूं, किताबों के खाली पन्ने
जिन पर उकेरे जा सकते थे शब्द,
भरी जा सकती थी भावनाएं,
खींचा जा सकता था समाज का बिम्ब,
पहुँच सकता था कोई संदेश
एक से दूसरी पीढ़ी को।
पर, नहीं हुआ ऐसा कुछ भी
पड़े रहे वो खाली पन्ने सूने खाली
क्योंकि..
नहीं पहुँची कलम,
न शब्द, उन तक
जो लिख सकते थे,
बने रहे उनके लिए वो खाली पन्ने
हमेशा खाली,
और भरे पन्ने सदैव अपरिचित।