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रवींद्रनाथ टैगोर आधुनिक भारत की महानतम हस्तियों में से एक माने जाते हैं। वह एक कवि, लेखक, विचारक, दार्शनिक, गीतकार और चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी विश्व में भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विश्व को उनकी सबसे बड़ी देन संभवतः उनकी शांति, अहिंसा व अंतर्राष्ट्रीयवाद (Internationalism) की अवधारणा है। उनका जन्म कोलकाता (तब कलकत्ता) के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में 7 मई, 1861 को हुआ था (बांग्ला कैलेंडर के अनुसार, टैगोर का जन्म 1268 में हुआ था) । उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था और माता का नाम शारदा देवी था । टैगोर अपने 13 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। रवींद्रनाथ टैगोर बचपन से बैरिस्टर बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में दाखिला भी लिया और बाद में लंदन के विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई भी की, लेकिन 1880 में बिना परीक्षा दिए और बिना कानून की डिग्री लिए ही वह वापस भारत आ गए। प्रतिष्ठित ‘ठाकुर’ परिवार के सदस्य के रूप में टैगोर रंगमंच, गायन (बंगाली और पश्चिमी), शास्त्रीय संगीत और साहित्यिक वाद-विवाद के कौशल के धनि थे। उन्होंने मानवतावाद और सार्वभौमिकता की वकालत की। टैगोर का स्थान न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में विशिष्ट है। वह 1913 में ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे। उन्होंने इस कार्य के माध्यम से भारतीय साहित्य को विश्व में एक नई पहचान दी। उन्होंने 3 देशों, भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के लिए राष्ट्रगान की रचना की/प्रेरणा स्रोत बने। 1915 में यूनाइटेड किंगडम के किंग जॉर्ज पंचम द्वारा टैगोर को ‘नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। हालांकि, उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद विरोध स्वरुप अपनी नाइटहुड उपाधि का त्याग कर दिया था। उन्होंने 2,200 से भी अधिक गीत लिखे हैं जिन्हें ‘रवीन्द्र संगीत’ के नाम से जाना जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर के गीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ‘ठुमरी शैली’ से प्रभावित थे।
रवींद्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ , ‘कविगुरु’ एवं ‘विश्व- कवि’ के नाम से भी जाना जाता है। गुरुदेव की उपाधि उन्हें महात्मा गाँधी ने दी थी ।
रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के साथ -साथ बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ की भी रचना की (1905 में ) । आनंद समाराकुन द्वारा रचित श्रीलंका का राष्ट्रगान “श्रीलंका माथा” या “श्रीलंका माता” भी उनकी ही रचनाओं से प्रेरित है ।
1913 में उन्हें उनकी रचना गीतांजलि के लिए साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । गीतांजलि की लोकप्रियता के कारण इसका अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, रूसी आदि भाषाओँ में अनुवाद किया गया। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले भारतीय थे।
स्वामी विवेकानंद के बाद टैगोर दूसरे भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने विश्व धर्म संसद को संबोधित किया था ।
रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति से भी गहरा लगाव था।
रवींद्रनाथ टैगोर ने लगभग एक हजार कविताएँ और दो हज़ार गीत लिखे हैं। चित्रकला, संगीत और भावनृत्य के प्रति इनके विशेष अनुराग के कारण “रवींद्र संगीत” नाम की एक अलग विधा की ही उत्पति हो गई जो आज भी संगीत के प्रेमियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है ।
टैगोर ने पश्चिम बंगाल में कोलकाता से लगभग 180 कि॰मी॰ उत्तर की ओर बीरभूम जिले के अंतर्गत बोलपुर के समीप “शांति निकेतन” नाम की एक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की। यह अपनी तरह का अनूठा संस्थान माना जाता है। 1901 में स्थापित यह प्रायोगिक विद्यालय 1921 में ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ बन गया।
रविंद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ दार्शनिक और कवि थे वही उनके दूसरे भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले प्रथम भारतीय थे। 1883 में रविंद्र नाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ। जबकि उनके पिता देवेंद्र नाथ टैगोर ब्रह्म समाज से जुड़े थे |
आठ साल की उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी। वहीं 16 साल की उम्र में टैगोर की पहली लघुकथा प्रकाशित हो गई थी।
उन्होंने अपनी पहली कविताएंँ ‘भानुसिम्हा’ (Bhanusimha) उपनाम से 16 वर्ष की आयु में प्रकाशित की थीं।
7 अगस्त, 1941 को कलकत्ता में उनका निधन हो गया।
अपनी काव्य कृति गीतांजलि के अतिरिक्त उनकी कुछ अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं: – नैवैद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ उपन्यास यथा -गोरा, घरे बाइरे और ‘रवींद्र के निबंध’ ।