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गीतांजलि (बंगाली : গীতাঞ্জলি , शाब्दिक अर्थ : 'गीत अर्पण') बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का एक संग्रह है । टैगोर को इसके अंग्रेजी अनुवाद, 'गीत अर्पण' के लिए 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला । यह सम्मान पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय, पहले एशियाई और एकमात्र भारतीय बन गए। [ 1 ]
लेखक :- रवीन्द्रनाथ टैगोर.
मूल शीर्षक :- গীতাঞ্জলি
भाषा :- बंगाली
विषय :- ईश्वर के प्रति भक्ति
शैली :- कविता
प्रकाशन तिथि :- 4 अगस्त 1910 ; 115 साल पहले
प्रकाशन स्थान :- ब्रिटिश भारत
अंग्रेजी में प्रकाशित :- 1912 ; 113 साल पहले
यह यूनेस्को के प्रतिनिधि कार्यों के संग्रह का हिस्सा है । इसका केंद्रीय विषय भक्ति है, और इसका आदर्श वाक्य है "मैं यहाँ तुम्हारे गीत गाने आया हूँ" (संख्या XV)। [ 2 ]
टैगोर द्वारा मूल रूप से बंगाली में लिखे गए संग्रह में 157 कविताएँ हैं, जिनमें से कई को गीतों या रवींद्र संगीत में बदल दिया गया है । मूल बंगाली संग्रह 4 अगस्त 1910 को प्रकाशित हुआ था। अनुवादित संस्करण, गीतांजलि: सॉन्ग ऑफरिंग्स , नवंबर 1912 में इंडिया सोसाइटी ऑफ लंदन द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसमें मूल गीतांजलि की 53 कविताओं के अनुवाद शामिल थे , साथ ही टैगोर के अचलायतन , गीतिमाल्य , नैबेद्य , खेया , आदि से निकाली गई 50 अन्य कविताएँ भी शामिल थीं। कुल मिलाकर, गीतांजलि: सॉन्ग ऑफरिंग्स में टैगोर के अपने अंग्रेजी अनुवादों की 103 गद्य कविताएँ हैं। [ 3 ] कविताएँ मध्यकालीन भारतीय भक्ति के गीतों पर आधारित थीं , जिनमें अधिकांश कविताओं में प्रेम का एक सामान्य विषय था । कुछ कविताओं में भौतिकवादी संपत्ति की इच्छा और आध्यात्मिक लालसा के बीच संघर्ष का भी वर्णन
मुख्य लेख: गीत अर्पण
गीतांजलि या सॉन्ग ऑफरिंग्स/सिंगिंग एंजेल का अंग्रेजी संस्करण 103 अंग्रेजी गद्य कविताओं का संग्रह है , [ 6 ] जो टैगोर की अपनी बंगाली कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद है, जिसे पहली बार नवंबर 1912 में लंदन में इंडिया सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किया गया था । इसमें मूल बंगाली गीतांजलि की 53 कविताओं के अनुवाद के साथ-साथ उनकी अन्य रचनाओं की 50 अन्य कविताएँ भी शामिल थीं। [ 7 ] अनुवाद अक्सर क्रांतिकारी होते थे, कविता के बड़े हिस्से को छोड़ देते थे या बदल देते थे और एक उदाहरण में दो अलग-अलग कविताओं (गीत 95, जो नैवेद्य के गीत 89 और 90 को एकीकृत करता है ) को मिला देते थे। [ 8 ] अंग्रेजी गीतांजलि पश्चिम में लोकप्रिय हो गई, और इसका व्यापक रूप से अनुवाद किया गया। [ 9 ]
1.मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा,
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
मूल बांग्ला से अनुवाद : रणजीत साहा
2. कितने अनजानों से तुमने करा दिय मेरा परिचय
कितने पराए घरों में दिया मुझे आश्रय।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
अपना पुराना घर छोड़ निकलता हूँ जब
चिंता में बेहाल कि पता नहीं क्या हो अब,
हर नवीन में तुम्हीं पुरातन
यह बात भूल जाता हूँ।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
जीवन-मरण में, अखिल भुवन में
मुझे जब भी जहाँ गहोगे,
ओ, चिरजनम के परिचित प्रिय!
तुम्हीं सबसे मिलाओगे।
कोई नहीं पराया तुम्हें जान लेने पर
नहीं कोई मनाही, नहीं कोई डर
सबको साथ मिला कर जाग रहे तुम-
मैं तुम्हें देख पाऊँ निरन्तर।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
मूल बांग्ला से अनुवाद : रणजीत साहा
3. अंतर मम विकसित करो
हे अंतरयामी!
निर्मल करो, उज्ज्वल करो,
सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे!
मंगल करो, निरलस नि:संशय करो हे!
अंतर मम विकसित करो,
हे अंतरयामी।
सबके संग युक्त करो,
बंधन से मुक्त करो
सकल कर्म में संचरित कर
निज छंद में शमित करो।
मेरा अंतर चरणकमल में निस्पंदित करो हे!
नंदित करो, नंदित करो,
नंदित करो हे!
अंतर मम विकसित करो
हे अंतरयामी!
मूल बांग्ला से अनुवाद : रणजीत साहा
4. तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ, गंधों में, वर्णों में, गानों में आओ।
आओ अंगों के पुलक भरे स्पर्श में आओ,
आओ अंतर के अमृतमय हर्ष में आओ,
आओ मुग्ध मुदित इन नयनों में आओ,
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ निर्मल उज्ज्वल कांत
आओ सुंदर स्निग्ध प्रशांत
आओ विविध विधानों में आओ।
आओ सुख-दुख में, आओ मर्म में,
आओ नित्य नैमेत्तिक कर्म में,
आओ सभी कर्मों के अवसान में
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : रणजीत साहा
5. मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में,
करो मन विगलित, जीवन विसर्जित
नयन जल में.
अकेली हूँ मैं अहंकार के
उच्च शिखर पर-
माटी कर दो पथरीला आसन,
तोड़ो बलपूर्वक.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में,
किस पर अभिमान करूँ
व्यर्थ जीवन में
भरे घर में शून्य हूँ मैं
बिन तुम्हारे.
दिनभर का कर्म डूबा मेरा
अतल में अहं की,
सांध्य-वेला की पूजा भी
हो न जाए विफल कहीं.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में ।